Last modified on 16 जुलाई 2008, at 19:51

कवि / महेन्द्र भटनागर

युग बदलेगा कवि के प्राणों के स्वर से,

प्रतिध्वनि आएगी उस स्वर की घर-घर से !

कवि का स्वर सामूहिक जनता का स्वर है,

उसकी वाणी आकर्षक और निडर है !

जिससे दृढ़-राज्य पलट जाया करते हैं,

शोषक अन्यायी भय खाया करते हैं !

उसके आवाहन पर, नत शोषित पीड़ित,

नूतन बल धारण कर होते एकत्रित !

जो आकाश हिला देते हुंकारों से

दुख-दुर्ग ढहा देते तीव्र प्रहारों से !

कवि के पीछे इतिहास सदा चलता है,

ज्वाला में रवि से बढ़कर कवि जलता है !

कवि निर्मम युग-संघर्षों में जीता है,

कवि है जो शिव से बढ़कर विष पीता है !

उर-उर में जो भाव-लहरियों की धड़कन,

मूक प्रतीक्षा-रत प्रिय भटकी गति बन-बन,

स्नेह भरा जो आँखों में माँ की निश्छल,

लहराया करता कवि के दिल में प्रतिपल !

खेतों में जो बिरहा गाया करता है,

या कि मिलन का गीत सुनाया करता है,

उसके भीतर छिपा हुआ है कवि का मन,

कवि है जो पाषाणों में भरता जीवन!

1953