कहते हैं मुझसे वो
कोई गीत लिखूं मैं
अब उन्हें रिझाने को
संगीत लिखूं मैं?
कोई कलम नहीं हूं
कहने पर चल जाऊं
कोई वृक्ष भी नहीं
जब भूख लगे फल जाऊं
चाह यही है चाहत से
उनकी विपरीत लिखूं मैं
कहते हैं मुझसे वो
कोई गीत लिखूं मैं
कहते हैं नहीं लिखूंगा
तो रूठ जाएंगे वो
दूर गए जो मुझसे
खुद भी टूट जाएंगे वो
क्यों निर्मोही को अपने
मन का मीत लिखूं मैं
कहते हैं मुझसे वो
कोई गीत लिखूं मैं
कहते हैं लिखूं प्रेम कहानी
मैं उनके दीवानों की
अपनी प्रीत मैं लिख ना पाया
पाती लिखूं बेगानों की?
लीक से हटकर चलता हूँ
क्यों कोई रीत लिखूं मैं
कहते हैं मुझसे वो
कोई गीत लिखूं मैं
कहते हैं प्रीत मेरी तुम
कुछ बढा चढ़ा कर लिखना
मेरे अंदाजों को थोड़ा
तुम सजा धजा कर लिखना
सच्चाई के मत वाला हूँ
क्यों ग्रीष्म को शीत लिखूं मैं?
कहते हैं मुझसे वो
कोई गीत लिखूं मैं
समझाते कुछ लोग मुझे
जीत को अपना प्यार लिखूं
बदबू आती जिन फूलों से
उनको पावन हार लिखूं
नफरत के काबिल दुनियाँ की
वहशत को प्रीत लिखूं मैं?
कहते हैं मुझसे वो
कोई गीत लिखूं मैं