कहीं और / अनीता वर्मा

मनुष्य की पूरी कथा
जीवन से छल की कथा है
बहुत दूर प्रकट होते हैं इसके सरोवर
उनमें खिले दुर्लभ कमल
बहुत दूर रहते हैं इसके अदृश्य पहाड़
हरियाली और ढलानें
कहीं और बसता है सुबह का आलोक
बीरबहूटियों की लाल रेशमी कतार

कोई तारा पहुँच के ऊपर
शान्त चमकता है
ठण्डी रेत पर प्यार और धूप के बिना
ज़हर के पौधे पनपते हैं
बन्दूकों के घोड़े बजते हैं कानों में
सूरज हलकान पक्षी की तरह
गिरता है नदी की गोद में
सो गई हैं समुद्र की मीठी मछलियाँ
पृथ्वी जैसे काले जादू बाज़ार की पिटारी |

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.