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क़िताबों को / ब्रज श्रीवास्तव

दीवारों की कीलें तो नहीं
पर बदली जाने लगीं हैं
तस्वीरें।
उन पर डाली जाने वाली
मालाओं में अब दूसरे फूल आने लगे।

ध्वज दूसरे ही टंगने लगे हर जगह
चौराहों पर हर शाम होने वाले
संवाद के अंदाज़ बदल गए

इशारों से हटाते हुए किरदारों को
दूसरे अभिनेता आ गए दृश्य में
दर्शक भी लगभग बदल दिए गये पूरे
तालाब के पानी की तरह

महकमों में भाषा बदल रही है
अनुशंसाओं और कार्यवाहियों की
मनोभावों ने ख़ुद देखा है
अपना आना जाना
उन चेहरों पर

अंगड़ाई ले ली है कुछ निश्चयों ने
बढ़ने ही वाला है कोई गति की तरह
अगर की महक और
दुपट्टे बदलने लगे कंधे के

सत्ताएँ बदलीं तो बदला इतना कुछ
क़िताबों तक पर रद्दोबदल का संकट आ गया
झटपट हटाया जा रहा है
पुस्तकालयों से उन क़िताबों को भी
जो आधी पढ़ीं जा चुकीं थीं