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काँटे / शम्भु बादल

कंकड़-पत्थर
हम साफ़ कर रहे हैं
रास्तों पर कालीन
बिछा रहे हैं
घबराओ नहीं
जनता को लुभा लेंगे
छोटे व्यवसाय
सरकारी उद्योग
लोक-कल्याणकारी रूप
समाप्त करेंगे
कच्चा माल बेचेंगे
अपना सब कुछ बेचेंगे
सस्ते में ही बेचेंगे
तुम्हें सारी सुविधाएँ देंगे

अन्दर काफ़ी रस है
आओ हमारे बाबा !
आओ हमारे दादा !

आफ़ द रिकार्ड :
एक विनती है
एक आरजू है
ऐ बाघ !
कुछ गुप्त-राशि

फ़ण्ड में चुपके से
ज़रूर दे देना