Last modified on 13 मई 2010, at 22:08

काग़ज़ एक पेड़ है (कविता) / मुकेश मानस

(काट दिए गए पेड़ की स्मृति में)
 
 
महज़
एक फ़ालतू काग़ज़
हाथ में लेते ही
सामने आ खड़ा होता है
अथाह हरियाली
और अदभुत हलचल लिए
बरसों पुराना एक पेड़
 
काग़ज़ फाड़ना शुरू करते ही
पेड़ की मजबूत गठीली शाख़ों पर
महकती हुई खूबसूरत पत्तियाँ
पीली पड़ने लगती हैं
और धुंधलाने लगता है
शाखाओं का गाढ़ा रंग
 
महज़
एक फ़ालतू काग़ज़ फाड़ते ही
अपनी मज़बूत शाखाएँ
और हज़ारों-हज़ार पत्तियाँ लिए
अपनी सारी हरियाली और हलचल लिए
बरसों पुराना एक पेड़
अंधकार में विलीन हो जाता है
चुपचाप
कोई क्यों सहेज रखे आख़िर
एक फ़ालतू काग़ज़
चाहे वह वर्षों पुराना
कोई पेड़ ही क्यों ना हो


रचनाकाल : 2002