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कातिक की रात / अज्ञेय

 
घनी रात के सपने
अपने से दुहराने को
मुझे अकेले
न जगा!
कृत्तिकाओं के
ओस-नमे चमकने को
तकने
मुझे अकेले
न जगा!
तकिये का दूर छोर
टोहने
इतनी भोर में
मुझे अकेले
न जगा!
सोया हूँ? मूर्छित हूँ!
पर अन्धे कोहरे में
बिछोहने
न जगा, न जगा, न जगा!

बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), नवम्बर, 1969