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कानपूर–2 / वीरेन डंगवाल


पूरे शहर पर जैसे एक पतली-सी परत चढ़ी है धूल की

लालइमली इल्गिन म्‍योर ऐलेनकूपर-

ये उन मिलों के नाम हैं
जिनकी चिमनियों ने आहें भरना भी बंद कर दिया है
इनसे निकले कोयले के कणों को
कभी बुहारना पड़ता था
गर्मियों की रात में
छतों पर छिड़काव के बाद बिस्‍तरे बिछाने से पहले
इनकी मशीनों की धक-धक

इस शहर का अद्वितीय संगीत थी

बाहर से आया आदमी
उसे सुनकर हक्‍का-बक्‍का हो जाता था


फिर मकडियां आई
उन्‍होंने बुने सुघड़ जाले
पहले कुशल मजदूर नेताओं
और फिर चिमनियों की मुख-गुहाओं पर
फिर वे झूलीं

और फहराई

फूटे हुए एसबेस्‍टस के छप्‍परों
और छोड़ दी गई सूनी मशीनों पर
अपनी सफेद रेशमी पताका जैसी.