Last modified on 25 जून 2010, at 12:19

कानपूर–4 / वीरेन डंगवाल


पूरी रात तैयारी के बाद अपनी धमन भट्टी दहकाते हैं

सूरज बाबू और चुटकी में पारा पहुंच जाता है अड़तालीस
लेकिन सूनी नहीं होगी थोक बाजारों
और औद्योगिक आस्‍थानों की गहमागहमी


कुछ लद रहा होगा
या उतर रहा होगा
या ले जाया जा रहा होगा
रिक्‍शों, ऑटों, पिकपों, ट्रकों
या फिर कंधों पर हीः

लोहा-लंगड़-अर्तन-बर्तन-जूता-चप्‍पल-पान-मसाला

दवा-रसायन-लैय्यापट्टी-कपड़ा-सत्‍तू-साबुन-सरिया

आदमी से ज्‍यादा बेकाम नहीं यहां कुछ
न कुछ उससे ज्‍यादा काम का