Last modified on 22 सितम्बर 2012, at 14:41

कायनात-१ /गुलज़ार

बस चन्द करोड़ों सालों में
सूरज की आग बुझेगी जब
और राख उड़ेगी सूरज से
जब कोई चाँद न डूबेगा
और कोई जमीं न उभरेगी
तब ठंढा बुझा इक कोयला सा
टुकड़ा ये जमीं का घूमेगा
भटका भटका
मद्धम खकिसत्री रोशनी में !

मैं सोचता हूँ उस वक्त अगर
कागज़ पे लिखी इक नज़्म कहीं उड़ते उड़ते
सूरज में गिरे
तो सूरज फिर से जलने लगे !!