Last modified on 30 अगस्त 2018, at 03:09

कालाहाण्डी-7 / चन्दन सिंह

यह अकाल
सूने आकाश से नहीं टपका है
उन्होंने रचा है इसे
इस पर
उनकी अँगुलियों के निशान हैं

उन्होंने रचा है कालाहाण्डी का करुण बंजर
घास का एक तिनका तक नहीं जिस पर
लेकिन ओट जंगलों से भी अधिक
कितनी आसानी से छिपा लेता है यह
उनके दाँत
उनके नाख़ून
उनके गोदाम

उन्होंने रचा है
कालाहाण्डी का अकाल
जिस पर कभी-कभी कोई छींटता है अन्न
जैसे अच्छत ।