अगर तुमने एक हाथ से मुझे सलाम किया होता
तो मैं दोनों हाथ जोड़कर तुम्हें नमस्कार करता
अगर तुमने नमस्कार में दोनों हाथ जोड़े होते
तो मैं तुम्हारे कदमों में गिर जाता
और अगर तुम मेरे कदमों को चूमते
तो मैं तुम्हारी पूजा करता
मगर हड़बड़ाहट में कहीं और देखने का
नाटक करते हुए तुम मेरी बगल से यों
गुजर गए जैसे तुमने मुझे देखा ही न हो
काश तुमने आजमाया होता मेरे प्यार को
काश तुम्हें यह डर न होता कि मैं मिलते ही
तुमसे तुम्हारी बेवफाई और चालाकी की
कैफियत मांग बैठूंगा
काश तुमने जोखिम उठाया होता
मुझसे आंख मिलाने का
और अपनी चिरपरिचित अदा के साथ
मुस्कुराकर मुझसे कहा होता हलो
काश तुमने मुझसे हाथ मिलाया होता
और प्यार के रहस्य को समझने का
किया होता प्रयत्न
यों तुम्हें शर्मसार करने की नीयत से
मैंने नहीं लिखी यह कविता
मगर काश मैंने यह कविता न लिखी होती!