किश्तियों के पार भी
कोई इक संसार रचा बसा है
जहाँ तुम श्वाँस लेती हो
वहाँ अमलतास का भी इक मौसम है
रजनीगंधा
अपने रूप, अपरूप के लिए नहीं मशहूर
वह ख़ुशबूओं और मोह का निशाँ है
ऐतबार करने वालों के लिए
चाँद आइना है
नहीं तो
महज़ बुझा हुआ अँगारा है
अपनी सूरत में सीरत लिए
वह सिर्फ़
इक चेहरा और जिल्द नहीं
इक किताब है!