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किसान / अशोक शुभदर्शी

किसानोॅ के गैता के
निरंतर प्रहारोॅ सें
टूटलोॅ छेलै चट्टान
धूर-धुसरित होलोॅ छेलै चट्टान
आरो बनैलोॅ गेलोॅ छेलै
समतल खेत

नहर लानलोॅ गेलै
पहाड़ोॅ में सुरंग बनाय केॅ
खेतोॅ तांय
भगीरथ पसीना के प्रतिफल छेकै
ई गन्ना, ई केतारी

कोय नै चुकाबेॅ पारतै
ई केतारी केरोॅ कीमत
घाम-पसीना के बूंदोॅ रोॅ कीमत
जे कर्जदार भी छै

बेशरम गरम हवा केरोॅ बीच
महाजनोॅ केरोॅ
नै जानै छै कोय
केना केॅ
किसान मरी जाय छै

केतारी उपजैला सें कम
महाजन के तकादा सें जादा
ऊ शहीद होय जाय छै।