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किसी इंसान को अपना नहीं रहने देते / सगीर मलाल

किसी इंसान को अपना नहीं रहने देते
शहर ऐसे हैं कि तन्हा नहीं रहने देते

दाएरे चंद हैं गर्दिश में अज़ल से जो यहाँ
कोई भी चीज़ हमेशा नहीं रहने देते

कभी नाकाम भी हो जाते हैं वो लोग कि जो
वापसी का कोई रस्ता नहीं रहने देते

उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले
फिर यही लोग कहीं का नहीं रहने देते

जिस को एहसास हो अफ़्लाक की तन्हाई का
देर तक उस को अकेला नहीं रहने देते

वाक़ई नूर लिए फिरते हैं सर पे कोई
अपने अतराफ़ जो साया नहीं रहने देते

ज़िंदगी प्यारी है लोगों को अगर इतनी ‘मलाल’
क्यूँ मसीहाओं को जिंदा नहीं रहने देते