रातुक शृंगार चुनू
आ कि भोरक सिंगरहार
आकाश में छिड़िआएल तरेगन
चुनू आ कि टूटल सितार
ऊँच गाछ तारक चुनू
आ कि काँट लुबधल खजूर
कुसियारक काँप चुनू
आ कि सघन बोन बबूर
खढ़-पतवार चुनू आ कि
तिजोरीक खूजल ताला
सगरो घोटाला चुनू
आ कि षड्यन्त्राक हवाला
स्वप्न में फुलाएल
पारिजात चुनू आ कि
धूरा में लेढ़ाएल निर्माल
उफनैत नदीक कछेर चुनू
आ कि टूटल नाहमे मझधार
फेर अपन अलच्छ हाथ चुनू
आ कि हथलग्गू हथियार
सदानीराक स्नेह
एतेक गँहीर आ विशाल
समुद्रक पानि
आखिर खाड़ किऐक होइ छै
हमर श्रम आ संघर्ष
अहाँक अस्तित्व लेल
आखिर नारा किऐक होइ छै
डेग-डेग पर उखडै़त
हमर साँस आ पिसाइत हड्डी
एहि महानगरक सम्पदा नहि
आखिर चारा किऐक होइ छै
एहि ठाम एक टा लेल रातुक चकाचैंध
हमरा लेल कनाॅट प्लेसक भुलभुलैया
आ दिनमे तारा किऐक होइ छै
सरनरियाक एहि शहर मे
एकटा निरापद ऊँच फुनगी
ताकब कतेक मुश्किल अछि
सदानीराक स्नेह पाएब
कतेक मुश्किल अछि
निर्गन्ध यमुनाक कछेर मे
बसल एहि महानगरमे