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कुम्भ / पंकज सुबीर

मैं चाहता था कि कुम्भ पर कुछ लिखूँ
लिखूँ कि किस तरह करोड़ों लोग
एक साथ नहा रहे हैं
जबकि गंगा का पानी तो
पहले जैसा साफ भी नहीं रहा
क्या आवश्यकता है?
इसी समय नहाने की
गंगा तो गंगा ही रहेगी
कभी भी नहाया जा सकता है
फिर अभी ही क्यों?
लेकिन
चाह कर भी कुछ नहीं लिख पाया
क्योंकि एक तरफ मैं था
और दूसरी तरफ करोड़ों आस्थाएँ
मैं एक हूँ
सही भी हो सकता हूँ, ग़लत भी
वे करोड़ों हैं
सही भी हो सकते हैं ग़लत भी
मगर औसत आँकड़ा उनके ही पक्ष में था
और मैं कुछ न लिख सका