बचपन से
एक बीज था
मेरे मन में
बीज, जो पेड़ बना
और बढ़ता रहा
छतनार हुआ
छाया दी
फल दिए
कितने ही बसंत दिए
लिया नहीं किसी से कुछ
फिर भी उस पेड़ को
काटने के लिए
तैयार खड़ी
रहीं
कुल्हाड़ियाँ
बचपन से
एक बीज था
मेरे मन में
बीज, जो पेड़ बना
और बढ़ता रहा
छतनार हुआ
छाया दी
फल दिए
कितने ही बसंत दिए
लिया नहीं किसी से कुछ
फिर भी उस पेड़ को
काटने के लिए
तैयार खड़ी
रहीं
कुल्हाड़ियाँ