क्यों कोसते हो इतना ? 
हम तो किसी का
कुछ नहीं बिगाड़ते ।
न ऊधो का लेते हैं
न माधो को देते हैं ।
संतोष को मानते हैं परम सुख ।
रहते हैं वैसे ही
जाहि बिधि रखता है राम ।
बिधना के विधान में 
नहीं अड़ाते टाँग ।
जगत-गति हमें नहीं व्यापती
तो तुमको क्या ? 
तुमको क्यों तकलीफ कि
हमारा आसमान छोटा- सा है 
कुएँ के मुँह के बराबर ?
हमने क्या बिगाड़ा है
जो कोसते हो इतना
पानी पी-पीकर ?