इनका कुछ वृतांत ज्ञात नहीं है. इन्होंने संवत् १५९८ में रसरीति पर 'हिततरंगिनी'नामक ग्रन्थ दोहों में बनाया. रीति या लक्षण ग्रंथो में यह बहुत पुराना है. कवि ने कहा है कि और कवियों ने बड़े छंदों के विस्तार में श्रृंगार रस का वर्णन किया है पर मैंने 'सुघरता'के विचार से दोहों में वर्णन किया है. इससे जान पड़ता है कि इनके पहले और लोगों ने भी रीतिग्रन्थ लिखे थे जी अब नहीं मिलते हैं. 'हिततरंगिनी'के कई दोहे बिहारी के दोहों से मिलते हैं. ग्रन्थ में निर्माणकाल का बहुत स्पष्ट रूप से दिया हुआ है--
सिधि निधि सिव मुख चन्द्र लखि माघ सुदिद तृतीयासु.
हिततरंगिनी हौं रची कवि हित परम प्रकासु.