किस सोचनी बुढ़िया<ref>‘The Thinking Women’ की धारणा</ref> ने
यह दुनिया सोची है
जिसमें पहाड़ों की खालें
ऐंठती-सिकुड़ती गई हैं
सदियों से पड़ती हुई धूप से
धरती की परतें मुड़-मुड़ गई हैं
आदमी निचुड़ता-सूखता रहा है
और क्योंकि धरती के नीचे की आग
ठण्डी होती जा रही है,
एक-न-एक दिन इसे
बर्फ़ाना-ठिठुरना है
शब्दार्थ
<references/>