कविता कुछ नहीं है
सिवा एक प्राचीन स्टोव की चढ़ती
परछाईं में बातचीत के
जब सब चले गए हों,
और दरवाज़े के बाहर
अभेद्य वन सरसरा रहे हों ।
कविता केवल कुछ भ्रम है
जिनसे किसी को प्यार हो,
और जिनका क्रम समय ने बदल दिया हो,
जिनमें कि अब
केवल एक संकेत,
एक अनभिव्यक्त आशा,
वास करती हो ।
कविता और कुछ नहीं है
सिवा आनन्द के, परछाइयों में
बातचीत के,
जबकि और सब कुछ विदा ले चुका हो
और केवल ख़ामोशी हो ।