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कैंची / पवन करण

एक रोज़ घर के कबाड़ में
दिखाई दी दोनों हिस्से टूटे
पास पड़े, धूल सने
अपने गौने में मिली

सिलाई मशीन का
साथ निबाहने पिता
तीस बरस पहले
लाए थे जिसे घर

वो कैंची जिससे माँ ने काटीं
बहनों की फ्राकें
अपने ब्लाउज
पिता के पायजामे

खोल, तकिए, परदे कितने
फ़िल्मों के चित्र,
काग़ज़ रंगीन
काटे मैंने जिससे,

क़िताबों के कवर
बनाईं पतंगें
जिसे खाली चलाने पर
खानी पड़ी मुझे

कई दफ़ा डाँट
जिससे बुआओं ने सँवारीं
अपनी लंबी-लंबी चुटियाँ
चाचा ने की कोशिश

नाख़ून काटने की असफल
जिसे कई बार
छिपाकर रखा गया
जो कई बार
ढूँढ़ने पर नहीं मिली

वो कैंची
फिलहाल घर के कोष में
नोट के दो टुकड़ों की तरह मौजूद
अपने होने में पूरे
तीस बरस सँजोए