कितना ही मनमोहक
क्यों न हो
दीवार पर टंगा
नए साल क कैलेण्दर
लेकिन
एक कमजोर से
धागे को
उसका भार
ढोना ही पड्ता है
साल भर !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"
कितना ही मनमोहक
क्यों न हो
दीवार पर टंगा
नए साल क कैलेण्दर
लेकिन
एक कमजोर से
धागे को
उसका भार
ढोना ही पड्ता है
साल भर !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"