कैसे कैसे तलवे अब सहलाने पड़ते हैं
कदम कदम पर सौ सौ बाप बनाने पड़ते हैं
क्या कहने हैं दिन बहुरे हैं जब से घूरों के
घूरे भी अब सिर माथे बैठाने पड़ते हैं
शायद उसको पता नहीं वो गाँव की औरत है
इस रस्ते में आगे चलकर थाने पड़ते हैं
काम नहीं होता है केवल अर्जी देने से
कुर्सी कुर्सी पान फूल पहुँचाने पड़ते हैं
इस बस्ती में जीने के दस्तूर निराले हैं
हर हालत में वे दस्तूर निभाने पड़ते हैं
हँस हँस करके सारा गुस्सा पीना पड़ता है
रो रोकर लोहे के चने चबाने पड़ते हैं