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कैसे ये सोने / नईम

कैसे ये सोने, ये कैसा सुहागा
कि हंसों की पंगत में बैठे हैं कागा?

निकल आए बुलबुल के अब पर नए,
कबूतर गिरह काटकर उड़ गए;

स्वभावों के विपरीत शंकाएँ जगतीं,
ज़हर चासनी में किसी ने है पागा।

भरोसे की भैंसे ही पाड़ा जनें जब,
सदन शीर्ष के ही अखाड़ा बने जब,

किसे दोष दें, किसके नामें लिखे हम-
कहें क्या, हमारा समय ही अभागा।

करख सत्य को आँख मीचे विरोधा,
सियासत के हों या धरम के पुरोधा।

नशे कर हरम में पड़े हैं पहरुए-
जगाने से भी कौन, कब इनमें जागा?

कैसे ये सोने, ये कैसा सुहागा,
कि हंसों की पंगत में बैठे हैं कागा?