कोई कवि
अंग-अंग पर
लिखता रहता छंद
जैसे-जैसे डोलती हो तुम
मैं लिखता हूँ
शब्द-शब्द पर लेकिन
जैसे-जैसे बोलती हो तुम
अंगों में होती हो
या शब्दों में
-तुम पर है-
कैसे अपने को
किस पर खोलती हो तुम।
कोई कवि
अंग-अंग पर
लिखता रहता छंद
जैसे-जैसे डोलती हो तुम
मैं लिखता हूँ
शब्द-शब्द पर लेकिन
जैसे-जैसे बोलती हो तुम
अंगों में होती हो
या शब्दों में
-तुम पर है-
कैसे अपने को
किस पर खोलती हो तुम।