कोकिला ओ कोकिला
ऋतु वसंत ने पहने गहने-
झूम रहीं वल्लरियाँ।
मधु गंध उड़ रही चहुँ दिशि
बहे मीठे जल की निर्झरियाँ
आ गया आ गया वसंत
कूक उठी है कोकिला।
शतदल-शतदल खिली कमलिनी
मधुकर से है गुंजित नलिनी
केसर से ले अंगराग
नाच रही चंचल तितली
रति अनंग का गीत प्रस्फुटित
बोल उठी है कोकिला।
झूल रहीं बाला उपवन में
बजती पग में किंकिणियाँ
चपल चाल से मृदुल ताल से
हँसती खिलती हैं कलियाँ
नाच रहा जग नाच रहा मन
झूम उठी है कोकिला।