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कोयलड़ी / राजेन्द्रसिंह चारण

कागलिया री
कांव-कांव सूं
कांपती कोयलड़ी
ईण्डा फूटण रै डर सूं
कूं-कूं करै
अर लोग सोचै
कित्तो मीठौ गावै है।