कौन कहे, मन अन्ध नहीं है!
टहटह लाल अँगार धवल है,
दाह कराल तुहिन-शीतल है;
पर चकोर गर्वित कि मोर-सा
मेरा मन घन-अन्ध नहीं है!
किसकी सुध में यों हूक रही है
कोयल बेकल कूक रही है?
मलयज से कहती कि गन्ध तो
है, पर उसकी गन्ध नहीं है!
फूल-फूल पर मँडराता है,
भ्रमर कहाँ कब बँध पाता है?
सान्ध्य कमल की बात और है,
वह गुलाब का बन्ध नहीं है!