वही शिथिल, अस्वस्थ, रुग्ण है शरीर,
क्या हुआ पहन लिया नवीन चीर ?
वही थके चरण,
वही दबे नयन,
कि क्या हुआ क्षणिक सुरा
उतर गयी गले ?
निमिष नज़र के सामने
अगर यह छा गया चमन !
सपन बहार आ गयी !
समीर है वही गरम-गरम,
मरण-वरण बुख़ार
वही गिर रही
उसी प्रकार
शीश से मनुष्य के
अशेष रक्त-धार !
झनझना रहे
हृदय के तार-तार !
1951