हिल उठा हिमाचल आज, मुकुट पृथ्वी का मानो डोल उठा।
ज्वार हुआ गंभीर उदधि में, शोषित का शोणित खौल उठा॥
व्योम वक्ष भीषण गर्जन कर, नव युग के स्वर में बोल उठा।
अवनी तल कम्पाय मान है, महा काल कल्लोल उठा॥
है आज क्रांति का दिवस, हिमाचल भी ललकार उठा।
है अब वेला विप्लव की, जड़ जगत नाद चिंघाड़ उठा॥
ज्वाला मुखी समान ज्वलित हो, भावों का उद्गार उठा।
खत्म करो अन्याय, विश्व का कोना-कोना गुंजार उठा॥
दारुण हैं ये नियम विश्व के, जीर्ण शीर्ण करने को विह्वल।
युग युग के पीड़ित जाग उठे, चल पड़े क्रांति पथ पर अविरल॥
झंझा के झोंके उमड़ पड़े, अरमान बने है उच्छृंखल।
ज्वाज्वल्य ज्योति-सी फैल गई, भीषण संहारिणी तप्त अनल॥