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क्वांटम जंप / पंकज कुमार

दोग-दागमे बैसि अपन गोटी लाल करबाक
ब्योंतमे लागल भावुकताक खेलमे माहिर
सड़ल-गलल लहासक अंतिम संस्कार करबाक
जे जिम्मा लेने छी अहाँ

तकरा पूर्ण करबा लेल लेमय पड़त अहाँकेँ
क्षणविशेष में तीव्र संवेगक सूक्ष्म भाववहनक
शाब्दिक अक्षमता केँ बुझैत
एकदम वास्तविक लय आ नवीन शिल्प

जाहिमे होयबाक चाही
कथ्यक व्यापकता
दृष्टिक उन्मुक्तता
समाजिक आ व्यक्तिगत रुपसँ
आधुनिकता सँ सम्पन्न भावबोधक संग
मनुक्खताक औकालति करैत नव बिम्ब-प्रतीक

तखनहि जुड़ि सकत अहाँक कवितासँ
हमरा भीतरक मनुक्ख
जकरामे एखनहुँ बाँचल अछि
निधोक बजबाक हुब्बा

सहजहि चीन्हि सकैत अछि ओ ओहि झूठकेँ
जे सत्यक चद्दरि लपेटने गंगा नहेबाक
यत्न क' रहलैक अछि आइ धरि।