Last modified on 10 अप्रैल 2012, at 21:06

क्षणिकाएँ-1 / रचना श्रीवास्तव


क्षणिकाएँ

(एक)
मेरा दर्द पढ़
सूरज बादल मे
छुप के रोता रहा
सुना है उस दिन वहाँ
खारे पानी की बारिश हुई थी

(दो)

चपल बिजली
बादल से नेह लगा बैठी
उसके आगोश में
चमकती इठलाती रही
पर बेवफा वो
बरस गया धरती पर

(तीन)

सूरज को
बुझाने हवा तेजी से आई
खुद झुलस
लू बन गई

(चार)

पूरा चाँद
तारों के संग
बादल की गोद में
लुका छुपी खेल रहा था
खुश था
ये जानते हुए भी की
कल से उसे घटने का दर्द सहना है
उसने हर हाल में
जीना सिख लिया था