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क्षितिज के नेह का हूँ अंश / भारत यायावर


पीले वस्त्रों में है मणि-कांत

स्वर्णिम वह

रक्तिम अधर

चुपके से आकर

मुझे जगा जाती है

खोलता हूँ आँखें

गहन अंधकार से

आता हूँ बाहर

मंद-मदिर पवन के साथ

हिलते पत्ते

एक काव्यात्मक लय में

चिड़ियों का कल-कूजन

और थिरकती हुई देह

क्षितिज के नेह का हूँ अंश

पर बहुत थोड़ा

दे पाता हूँ

फिर भी

कहाँ रह पाता है संचित

आज पूर्वाकाश ने

प्रकट कर दिया है

वह रहस्य

जिसके अस्तित्व से

अनभिज्ञ था


(रचनाकाल :1991)