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खड़कू भल्या / सुन्दरचन्द ठाकुर

घूम आओ अमरीका
लन्दन देखने की तुम्हारी मुराद पूरी हो जाए
देख पाओ तुम स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी और
एफ़िल टॉवर
एक दिन चन्द्रमा पर भी कूद लगा लेना
यहाँ बारह साल गुज़ारने पर भी
मैं इस दिल्ली को ही ठीक से नहीं देख सका
मुम्बई कोलकाता की तो ख़ैर बात ही क्या
और कहाँ रहा अपना वतन यह भारत सारा

मैंने खड़कू भल्या भी ठीक से नहीं देखा
जहाँ मैं पैदा हुआ
उसके क़दमों पर एक नदी है
मैं उसमें नहीं तैरा
उसके सिरहाने पहाड़ है
उस पर नहीं चढ़ा

जी भरकर बातें नहीं कर सका
दूसरा विश्वयुद्ध लड़े अपने बड़े पिता से
अब नब्बे के होने को आए
बीमार वे किसी भी दिन गुज़र सकते हैं

सोचता हूँ अगली छुट्टियों में
हो आऊँ अपने गाँव