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ख़ून-ख़राबा / एकराम अली

हँसी ...
हँसी के बारे में
उन लोगों ने कुछ ख़ास नहीं सोचा था
वे केवल हँसते रहे थे,
लेकिन मृत्यु के बारे में
उन्होंने बहुत सोचा था
फिर भी मर गए थे वे

यह जो हँसते-हँसते मरना है
अचिन्ता से चिन्ता का विलुप्त हो जाना
अनमने भाव से ढूँढ़ना और पा जाना -- ये सब बातें
किसी को पता नहीं था
पिछली शाम
क्यों चाय की दुकान पर
बेंच के चारों ओर चक्कर काट रही थीं!
जिस प्रकार कोबरा साँप
अपनी बाँबी से दूर
घास के जंगल में टोह लेता रहता है!

मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी