जब मेरी ख़ामोशी
तुम्हारी खामोशी से बात करती है
अनुभूतियों के सामने
शब्द कहाँ टिक पाते है
नर्म रुई के बादलों में
तुम्हारे नर्म दिल का अहसास है
उसी के बीच से आती हुई
सूरज की तेज किरणों मैं
तुम्हारी बातों का आक्रोश है
मंद चलती हुई हवा
जैसे तुम्हारी बात कह रही हो
सागर की लहर की हलचल में
तुम्हारा विशालता का स्वरूप है
अब बताओ कहाँ ज़रूरत है
हमारे साथ की
किसी बात की
चल रहे है ना अकेले
बिना मिले खामोशी से
और देखो कितनी कैफ़ियत
है इस ख़ामोश मिलन में