जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये ,
सूरज का उजाला कभी शब् तक नही पहुंचा ।
जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया ,
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नही पहुंचा ।।
जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये ,
सूरज का उजाला कभी शब् तक नही पहुंचा ।
जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया ,
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नही पहुंचा ।।