घोर अकाल में
अभावों के दिन
सौंप दी थी हमें
तुमने अपनी देह
वक्ष तुम्हारे छीलकर
मिटा ली थी हमने
आंतो की आग...
तुम्हारे ही सबब बना रहा
अस्तित्व
हम कैसे भुला दें तुम्हें
ऐसे कृतघन तो नहीं हम
खेजड़ी!
घोर अकाल में
अभावों के दिन
सौंप दी थी हमें
तुमने अपनी देह
वक्ष तुम्हारे छीलकर
मिटा ली थी हमने
आंतो की आग...
तुम्हारे ही सबब बना रहा
अस्तित्व
हम कैसे भुला दें तुम्हें
ऐसे कृतघन तो नहीं हम
खेजड़ी!