तुम्हारे पास हम
बरसों से नहीं गये
मिट्टी और किनारे की घास को
कबसे नहीं देखा
फिर भी पहुंचाते रहे थे तुम
हमें ताज़ा अनाज
एक पैगाम सदा आता रहा
खुशबू से भरा
रिश्तों को तुमने हमेशा सींचा
बोने से ज्यादा फसल देकर
इधर हम हुए कि
एक बड़ी रकम लेकर
सेठ से
कर आये तुमसे रिश्ता खत्म
कचहरी में करके
एक हस्ताक्षर