देख-देख
भूधराकार
उड़ते घन-गज को
बंधे-बंधे गजराज
आज फिर दिन भी झूमे
मुक्ति कामना की तरंग में
फिर जाने क्या सोच
उठा कर सूंड
शिला से अचल हो गये
झूमे ताल तमाल
दसों दिग्पाल
काल के महाखंभ में
बंधे-बंधे भी
यही झूमना
काल हो गया
इस अकाल में
छन्द के लिये