मैं तुम्हारे अधरों की अरुणाई नहीं
तुम्हारे नाख़ूनों पर चढ़ी गुलाबी चमक नहीं
तुम्हारे पैरों में लगा महावर नहीं
नाहक ही मैं पीछे आया
तुम्हारे केश-अरण्य में गमकता
अपनी ही सुगन्ध से अनजान
मैं तुम्हारा अन्तरंग नहीं
मैं तुम्हारे अधरों की अरुणाई नहीं
तुम्हारे नाख़ूनों पर चढ़ी गुलाबी चमक नहीं
तुम्हारे पैरों में लगा महावर नहीं
नाहक ही मैं पीछे आया
तुम्हारे केश-अरण्य में गमकता
अपनी ही सुगन्ध से अनजान
मैं तुम्हारा अन्तरंग नहीं