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गजल (1) / चन्द्रमणि

चान बेजोड़ कोनाकें कने सिंगारि लिअऽ
लगाओल रूपक बाजी से अहाँ मारि लिअऽ।।

लहरि केर ताले पर चान डगमगाइत अछि
अहाँकेर चालि लहरिये कने विचारि लिअऽ।

चान बकलेल खेल जानै नै आँखिक ओ
मरय बिनु वाण कते आँखि तें सम्हारि लिअऽ।

रूप सिंगारल तऽ एक आँखि टामे रहू
उठै अयनामे ने धधरा घोघ तें काढ़ि लिअऽ।

रूपकेर सागरमे एक छूछ गागर हम
दहायल जाइछ ‘चंदर’ बाँहिमे थाहि लिअऽ।