केसर-कुंकुम का लहका दिगन्त है
गंध की अनन्त वेदना वसन्त
चीर उर न और
धुंधलाए वन की
ओ अनचीती बाँसुरी
गीत या अतीत बुझे द्वीप-द्वीप का
मोती अनबिंधा मुंदी-मुंदी सीप का,
धूला-धूला वर्तमान
धूप-तपा तीखा
चीख़-चीख़कर
हँसना-रोना है सीखा
गोपन मन भावी का काँचनार है
कब फूले क्यों मुरझे बेकरार है
उजले दिन
हरख साँझ-झाँवरी
थके-थके पाँव
अभी बहुत दूर गाँव री