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गरियाळो / मुकुट मणिराज

म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा
वै भाईल्यां का रुंथाळा
धूळा कांकरां का चाळा
चोमासो गारा की खोळ
ऊंदाळो धूळ की रमझोळ
तू रीजै थारी मौज में
म्हं सी बैनड़ की खोज में ॥
रुण झुण काना में झणकार
हिवड़ा में आळा जंजाळा...

म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा

बगलां झूंपड़ा की झालर
दूधां नीमड़यां का फ़ूंदा
बीछ्यां की झणकारयां उड़ती
चालै रूपां का सा लूंदा
गौरयां का माथां पै बैवड़ा
हाथां में लाम्बा जेवड़ा
जद सोमार पूजबा जाती
थारै मुगजी सी कढ़ जाती
आभा सी दमकती बीजळ्यां
हेळी सी उठती झाळा......

म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा

जद छम छम घर बारै आई
थारी धूळ में म्हूं लपटी
बाबल नै आछ्या फ़ैराया
पण,थारा गारा में र्पटी
अम्बर पटकी धरती झेली
थरीछाती ऊपर खेली
मायड़ पैदा करबा हाळी
पण जीं पछै थनै पाळी
खेली भाईल्या की लेरां
थारी हो’र गळा की माळा॥
म्हारै फ़ैली कतनी पाळी
करी पराई न पाछी म्हाळी
अब म्हूं बैरण बणगी बोझ
ठाली ढोर ज्यूं ही टाळी
फ़ेरूं भी छम छम बाजैगी
पण बै भी यूं ही लाजैगी
तू तो दीखै छै निरमोही
हाथां पाळी हाथां खोई
करदै लार परयां की
मूंडा पै जड़ दे ताळा

म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा

म्हारा बीरा नै समझाईजे
ऊळ्यूं धूळक की आवैगी
जाती बा’ळ सूं खैदीजै
भर भर चिमट्यां ले जावैगी
फ़ैली छोटा उघाड़या पांऊं
राता सा पावां की छाया
चल्या जे पाछा न आया
उगती कूंपळ भी जाणैगी
कुणका जाता सा पगवाळा

म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा

थारी धूळ जीव को रूप
तू सबनै देती ई रीजै
बाळक हीरां की सी कंठी
जुग जुग पड़ी गळां में रीजै
आवै नखराळ्यां छणगाळ्यां
हरी बेल हो फ़ळती रीजै
अम्मर नाऊं रहे गरियाळो
जे भी खड़ज्या कटज्या काळो
एक मोती टूट चल्यो
पो’ पूरी करजै माळा
म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा

म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा

या लूण्या सी थारी धूळ
म्हारा डीलड़ा में रमगी
ईं सूं ही खून बण्यो म्हारो
अब या रगां रगां में गमगी
घणी खिलाई,जद म्हूं रोई
पण अब छोड पराई होई
जे म्हूं उघाड़या डीलां आती
थारी धूळ ओढ़यां जाती
चाली ले करजो माथ पै
मन में यादां का पिंडाळा

म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा