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गलतफहमी / नासिर अहमद सिकंदर

गलतफहमी भी एक अजीब शब्द है
इस मायने में
कि बचपन में पाठ की तरह न भी पढ़ा जाये इसे
तो भी जवान होते-होते यह शब्द
आ जाता मस्तिष्क में
फिर तो सारा पढ़ा-पढ़ाया
तार्किक ज्ञान चाहे धुल जाये
पर यह अतार्किक शब्द
घर कर जाये
इसका आना जितना सहज
बिन बुलाये
जाना दिमाग से
उतना ही कठिन
यह जहर से भी जहरीली
पर ऐसे उतरे हलक में गर्र से भीतर
जैसे पानी
कि फिर तो सौ सबूत
हजार कसमें
और लाख दफे जान देने की चेतावनी के बावजूद
यह हिले, न डुले
न हो भीतर से बाहर
इंच भर
टस से मस रत्ती भर
कभी कभी तो इतनी पुख्ता दिल में इसकी जगह
कि बिन सबूत
सच जैसी
हत्या में शामिल तो नहीं यह
पर स्वाभिमानी या भरोसे लायक आदमी की
यही करे हमेशा
(चरित्र) हत्या
दाम्पत्य जीवन के घरौंदे में तो
थोड़ी सी भी जगह पा जाये यदि यह
तो समझो बुनियाद हिले
अटूट बंधन की यकीनन
गलतफहमी का एक पहलू यह भी महत्वपूर्ण
कि कभी कभी जरूरत से ज्यादा
आत्मविश्वास की तरह पले यह
गलतफहमी का एक सच यह भी अंतिम
कि अधिकांशतः गलत
गलतफहमियाँ
गलतफहमियाँ
पालने वाले तक !