गली एक लम्बी और सूनी ।
चलता अन्धेरे में, ठोकर खाए गिर जाता
उठता हूँ चलता टटोलता, मेरे पाँव
पड़ते चुप पत्थरों पर, पत्तों पर सूखे हुए ।
पीछे-पीछे कोई और भी रखता पाँव,
चलता पत्थरों पर :
अगर मैं रुकूँ तो रुक जाता वह भी
अगर मैं दौड़ूँ तो दौड़ता वह भी
मुड़कर मैं देखता: कोई नहीं
हर चीज़ अन्धियारी, चौखटहीन
मुड़ते, फिर मुड़ते इन कोनों में
खुलते ही जाते जो आगे गली में
जहाँ नहीं इन्तज़ार मेरा किसी को
कोई भी करता न पीछा जहाँ मेरा
जहाँ मैं करता हूं पीछा उस आदमी का
खाता जो ठोकर, फिर उठता है और मुझे
देख कहता है: कोई नहीं ।