Last modified on 27 फ़रवरी 2011, at 13:06

ग़ज़ल-1 / मुकेश मानस



खुद से ही बेगाने हैं
दर्द भरे अफ़साने हैं

जब भी अपने भीतर झांका
तह्ख़ाने-तह्ख़ाने हैं

हमको धोखा देने वाले
सब जाने पहचाने हैं

अब भीतर का दिया जलालो
कदम-कदम वीराने हैं
1995