अस्सी फ़ीसद समय उसका
अच्छे सम्बन्ध बनाने में जाता है,
चार प्रतिशत उन्हें बेहतर बनाने में ;
दस फ़ीसद पुरानों को निभाने में,
सवा तीन प्रतिशत
मर चुके रिश्तों को जीवित बनाने में,
बचे पौने तीन फ़ीसद...
यह अंश खो जाया करता है
निरर्थकता बोध के इस
आधुनिक ज़माने में !
उसके जीवन, दिनचर्या या लक्ष्यों में
अपनत्व का प्रतिशत ज्ञात कीजिए
फिर (तब)
अपना आपा खो चुके किसी
उपेक्षित कवि की कोई
अगली बात कीजिए !
सम्भव थी उसके लिए भी कोई
कोमल-कांत पदावली ;
रूपायित कर सकता था
वह भी
पेरिस में विंची की मोनालिसा,
मैड्रिड में पिकासो की गेर्निका
या न्यूयॉर्क में
विंसेंट वान गॉग की तारों छाई रात
या मशहूर स्टारी नाइट
या कोई और चित्रावली ।
...पर वक़्त नहीं उसे मन की
उलझी भावनाओं को उकेरने के लिए
चाहता है कि बने पॉल क्ले,
गुस्ताव क्लिम्ट या हुआन मीरो ;
दलितों का मसीहा
विस्थापितों का नायक
या हॉलीवुड का कोई ऐक्शन हीरो !
पर वह फ्रायडीय गाँठ
अकड़ जाती है
और उस वंचित कलाकार की ज़िन्दगी
लौकिक सम्बन्धों में जकड़ जाती है ।